एक साल से भी ज्यादा समय का वेटिंग पीरियड वाला Thar सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों के अंदर भी काफी डिमांड में है, लेकिन कैसे सेना के लिए बनाए गए इस कार पर पूरी दुनिया का दिल आ गया।
इस स्टोरी को ही आज हम जानने वाले हैं। दोस्तों। दुनिया में दूसरा वर्ल्ड वार 1939 से 1945 के बीच में लड़ा गया था और इसी युद्ध के दौरान ही Mahindra Thar के अस्तित्व में आने की शुरूआत हुई थी।
दरअसल ये वॉर जब अपने चरम पर था तब अमेरिका अपने सैनिकों और हथियारों को युद्ध के मैदान में भेजने के लिए फाइटर प्लेन और ट्रकों का इस्तेमाल कर रहा था।
लेकिन ट्रक और प्लेन्स के साथ में प्रॉब्लम ये थी कि एक तो ये साइज में बड़ा होने की वजह से हर जगह नहीं जा सकते थे और दूसरा ये बहुत ज्यादा महंगे भी थे।
ऐसे में अमेरिका को अर्जुन की एक ऐसे व्हीकल की जरूरत पड़ी जो कि सस्ता कॉम्पैक्ट और लाइटवेट होने के साथ ही मजबूत भी हो और जरूरत पड़ने पर इस व्हीकल को हवाई जहाज से सीधा युद्ध के मैदान में उतारा जा सके।
अब इस जरूरत को पूरा करने के लिए अमेरिकी सेना ने देश भर के करीब 135 ऑटोमोबाइल कंपनी से एक मजबूत फोर व्हील ड्राइव कार के प्रोटोटाइप मॉडल बनाने के लिए कहा, लेकिन चूंकि सेना ने ये प्रोटोटाइप बनाने के लिए सिर्फ 49 दिन का समय दिया था।
इसीलिए 135 में से सिर्फ दो कंपनी बैंटम और विलीज ओवरलैंड ने ही सेना के इस रिक्वेस्ट पर रिस्पॉन्ड किया था।
विलीज का प्रोटोटाइप मॉडल आलमोस्ट तैयार था और उसे कंप्लीट करने के लिए उन्होंने सेना से थोड़ा सा समय और मांगा। लेकिन सेना ने उन्हें एक्स्ट्रा टाइम देने के लिए
साफ इनकार कर दिया। लेकिन वहीं बैंटम कंपनी की अगर बात करें तो वो 49 दिन के अंदर एक वर्किंग प्रोटोटाइप बनाने में सफल रहे थे और सेना को भी उनकी कार का डिजाइन पसंद आ गया था।
लेकिन बैंटम उस समय एक बहुत छोटी कंपनी थी, जिसकी प्रोडक्शन कैपिसिटी इतनी नहीं थी कि वह आर्मी की डिमांड को टाइम पर पूरा कर सके।
इसीलिए सेना ने बैंटम का वो डिजाइन फोल्डर रिलीज इन दोनों कंपनीज को दे दिया और उनसे कहा गया कि वो इस डिजाइन में अपने हिसाब से बदलाव करके अपने अपने मॉडल को प्रजेंट करें।
इसके बाद से इन दोनों कंपनीज ने आर्मी के सामने इस कार के अपने अपने वर्जन पेश किए जिन्हें बारीकी से परखने के बाद से विलीज के वर्जन को इस कार का ही स्टैंडर्ड डिजाइन मान लिया गया।
अब चूंकि इस कार के लिए विलीज का डिजाइन फाइनल हुआ था। ऐसे में इसके सभी लीगल राइट्स भी विलीज कंपनी के ही नाम किए गए।
जहां विलेज ने जीप नाम कोड रेड करवाकर अपनी इस कार को विलेज जीप का नाम दे दिया और इस तरह से उस फेमस जीप कार की शुरूआत हुई जिसने आगे जाकर पूरी दुनिया में नाम कमाया।
दरअसल ये कार किसी भी तरह के ऊबड़ खाबड़ रास्तों पर चलने में सक्षम थी। साथ ही ये इतनी मजबूत थी कि छोटे मोटे धमाकों और बंदूक के हमलों को भी ये आराम से घेर लेती थी और इन्हीं सभी खूबियों की वजह से ही जीप तुरंत ही वर्ल्ड वॉर का एक अहम हिस्सा बन गई।
अब आपको जानकर हैरानी होगी कि उस समय वर्ल्ड बाय टू के लिए करीब 6 लाख ये बनाई गई थी और दोस्तो जब तक वर्ल्ड वार चला तब तक ये कार काफी डिमांड में रही।
लेकिन 1945 में वॉर खत्म होने के बाद से इस कार की डिमांड भी पूरी तरह से खत्म हो गई और अमेरिकी सेना ने भी इसे खरीदना बंद कर दिया।
अब इस घाटे के सिचुएशन से निकलने के लिए कंपनी ने जीप को आम लोगों में भी बेचने की कोशिश की, लेकिन जिस तरह की सफलता इसे युद्ध के मैदान में मिली थी वैसी सक्सेस इसे शहर के आम सड़कों पर नहीं मिल पाई।
दरअसल वार में यूज होने की वजह से जीप की छवि एक सोल्जर्स कार की बन गई थी और इसी के चलते कोई भी इसे एक नॉर्मल डे टू डे कार के रूप में एक्सेप्ट नहीं कर रहा था और कुछ साल तक तो ये कंपनी जैसे तैसे थोड़ी बहुत सेल्स करके ही सर्वाइव करती रही, लेकिन सेल्स के लगातार कम होने की वजह से कंपनी की हालत बिगड़ती चली गई और फिर एक समय ऐसा आया कि कंपनी पर बंद होने तक का खतरा मंडराने लगा और दोस्तो यही वो टाइम था, जहां से स्टोरी में महिन्द्रा कंपनी के फाउंडर मिस्टर जेसी और केसी महिन्द्रा की एंट्री हुई।
असल में केसी महिन्द्रा ने अपनी लाइफ के कुछ साल अमेरिका में भी बिताए थे और वही पर उन्होंने जीप को पहली बार देखा था।
अमेरिका में जीप को देखकर वे इस व्हीकल से इतने इम्प्रेस हुए थे कि उन्होंने उसी समय ही इस कार को इंडिया लाने का फैसला कर लिया था और अपने इस सपने को ही पूरा करने के लिए महिन्द्रा ब्रदर अमेरिका पहुंचे थे।
जहां जाकर उन्होंने विलीज कंपनी को एप्रोच किया और कंपनी के साथ जीप के सीजे टू हुए मॉडल को इंडिया में इम्पोर्ट करने की डील साइन कर ली और इस तरह से 1949 में महिन्द्रा ब्रदर्स जीप को
भारत लेकर आए। अब तक वैसे तो जीप एक एवरेज प्राइस वाली कार थी, लेकिन फिर भी इसका प्राइस इतना कम नहीं था कि भारत के आम लोग इसे परचेज कर सकें।
इसीलिए शुरूआत में यह इंडियन मार्केट के अंदर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई, लेकिन दोस्तो जीप के इंडियन मार्केट में फेल होने पर भी महिन्द्रा कंपनी ने हार नहीं मानी और साल 1960 की शुरूआत में उन्होंने विलेज कंपनी के साथ एक और डील साइन की और जीप के सीजे तीन मॉडल को इंडिया में मैन्युफैक्चर करने का लाइसेंस प्राप्त कर लिया।
अब इंडिया में मैन्युफैक्चरिंग शुरू होने से जीप का प्राइस और भी ज्यादा कम हो गया और मैन्युफैक्चरिंग के साथ ही महिन्द्रा ने जीप के अंदर कुछ बुनियादी बना। दावे किए जा सके।
इसके लिए ठंडाई को इंडियन मार्केट के हिसाब से बदलकर राइट हैंड डाई कर दिया गया, क्योंकि इसी की वजह से बहुत से लोग इस कार को इंडिया में परचेज नहीं कर रह थे।
इसके अलावा जीप जो सिर्फ पेट्रोल इंजन के साथ में आती थी। महिन्द्रा ने इंडियन मार्केट में इसके डीजल वैरियंट को भी लॉन्च किया और दोस्तो।
इसी तरह से उन्होंने इस कार में और भी बहुत सारे छोटे मोटे बदलाव किए।
जिसका नतीजा ये हुआ कि इस बार जीप भारत में सफल हो गई थी और देखते ही देखते सिर्फ कुछ ही सालों में इसने इंडियन मार्केट के ट्वंटी फाइव एसेंशियल को एक्वायर कर लिया था।
इसके बाद से महिंद्रा करीब 40 साल तक जीप के अलग अलग वर्जन बनाती रही और इसका हरेक वर्जन इंडियन मार्केट में धूम मचाता रहा, लेकिन 240 साल की ये सफलता नाइंटीज के दौर से घटनी शुरू हो गई और शुरूआती दो हज़ार में जब महिन्द्रा ने बोलोरो और स्कार्पियो जैसे कार्स लॉन्च की तो फिर उनके सामने जीप लोगों को आउटडेटेड लगने लगी।
दरअसल एक ऑफ रोड कार के रूप में लोग जीप की जगह पर बोलोरो और स्कार्पियो जैसी ज्यादा बड़ी और लग्जरी एसयूवी को पसंद करने लगे थे।
इसी के चलते जो जादू जीप ने विंटेज और एडिज के दौर में क्रिएट किया था। वो दो हज़ार में आकर पूरी तरह से खत्म हो गया। यहां तक कि इंडियन आर्मी जो कि कई दशकों से जीप की एक लॉयल कस्टमर थी।
उन्होंने भी जीप की जगह पर मारूति जिप्सी को खरीदना शुरू कर दिया। जीप का इस तरह से फेल होना महिन्द्रा के लिए एक बहुत बड़ा झटका था।
ऐसे में कंपनी को जल्दी किसी ऐसी ऑफरोड कार की जरूरत थी जो कि जीप को रिप्लेस कर सके और इस तरह से अक्टूबर 2 हज़ार 10 में महिन्द्रा कंपनी ने Thar को लॉन्च करके जीप को हमेशा के लिए रिप्लेस कर दिया।
दरअसल, Mahindra Thar स्कार्पियो मेजर और सीजे फाइव जैसे कार्स के कॉम्बिनेशन से बनी थी, इसीलिए लॉन्च होते ही इसने सभी का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया।
हालांकि इसके बावजूद भी इस कार को वैसी सफलता नहीं मिल पाई जैसा की कंपनी ने उम्मीद की थी।
इसी के चलते महिन्द्रा ने Thar के फर्स्ट जनरेशन को दो हज़ार 20 में हमेशा के लिए बंद कर दिया और फिर इस कार में कई सारे बड़े बदलाव करके अक्टूबर 2 हज़ार 20 में इसकी सेकंड जनरेशन को भी लॉन्च किया गया और दोस्तो Thar के ये सेकंड जनरेशन पहले वाले से कहीं ज्यादा पावरफुल थी।
इसीलिए इस बार लोगों के बीच में Thar का जादू चल गया और ये जादू कुछ ऐसा चला कि लॉन्च होते ही ये इंडिया की बेस्ट सेलिंग कार्स में से एक बन गई।
अब अगर आज की बात करें तो इस समय Thar इंडिया के अंदर इतनी ज्यादा डिमांड में है कि इसका वेटिंग पीरियड एक साल से भी ज्यादा का चल रहा है और इसकी सेल्स लगातार आसमान को छू रही है।
वाकई हमारी आज की इस आर्टिकल में बस इतना ही था।
ये आर्टिकल आपको कैसी लगी हमें कमेंट करके ज़रूर बताइएगा। आपका महत्वपूर्ण समय देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।