द तो आज हम एक ऐसी कार कंपनी के बारे में बात करेंगे, जिसने भारत में करीब 30 सालों तक राज किया और इस कार को रखना एक समय लोगों के लिए इज्जत की बात हुआ करती थी।
जिस कार कंपनी की मैं बात कर रहा हूं, उसका नाम है हिन्दुस्तान एंबेसडर जिसे के इसके शानदार लुक्स और परफॉर्मेंस की वजह से किंग ऑफ इंडियन रोल्स भी कहा जाता है और दोस्तो यह कार लोगों के लिए एक कार कम और अहसास ज्यादा हुआ करती थी।
भारत के ना जाने कितने भाई बहनों ने इस कार की आगे वाली सीट के लिए लड़ाई की है और न जाने कितने लोगों को उनकी मंजिलों तक पहुंचाने में इस कार ने उनका साथ निभाया और एम्बैसडर कार एक ऐसी गाड़ी थी जो कि ना केवल बड़े बड़े नेताओं बिजनेसमैन और आफिसर्स की पसंद हुआ करती थी, बल्कि आम लोग भी इस कार के उतने ही दीवाने थे।
और इसका मुख्य कारण यह था कि इसके प्राइस को एक मिडिल क्लास फैमिली भी अफोर्ड कर सकती थी और दोस्तो अभी तक के स्टोरी से तो आपको पता चल ही गया होगा कि इस कार में जरूरी कोई खास बात थी।
तो चलिए दोस्तो क्यों न हम इस कार की स्टोरी को शुरू से डिटेल में जानते तो दोस्तो इस कहानी की शुरूआत होती है। आज से करीब 62 साल पहले से जब 1956 में हिंदुस्तान मोटर्स ने ब्रिटिश मोटर कॉरपोरेशन से उनके दो कार्स को मोरिस, आक्सफोर्ड सिरीज वन और सिरीज टू की कार बनाने का लाइसेंस ले लिया और फिर अपनी कार हिन्दुस्तान टाइम्स और लैण्ड मास्टर बनाई और फिर मोरिस आक्सफोर्ड सिरीज थ्री की तर्ज पर 1958 में अंबेस्डर बनाई थी, जिसका डिजायन उस समय के हिसाब से बहुत ही जबरजस्त था और इसमें मौजूद जगह भी काफी थी और इस कार को जिन्होंने डिजाइन किया था उनका नाम था ऐनक।
इसी गोली और यह कार पूरी तरह से मैडम इंडिया फेल हुआ करती थी और दोस्तो बता दूं कि हिन्दुस्तान मोटर्स और बिरला ग्रुप का एक हिस्सा है जिसकी स्थापना 1942 में बीएम बिरला ने की थी और Ambassador कार के उस्ताद तब जो कंपटीटर थे उन कार का नाम था। प्रीमियम पद्मिनी और स्टैण्डर्ड टैंक।
लेकिन इन कारों की तुलना में Ambassador का डिजाइन और इसके अंदर का स्पेस इसके लिए प्लस प्वाइंट हुआ करता था, जो इसको ना केवल दूसरी कंपनियों के कारों से बेहतर बनाता था, बल्कि यही वजह थी कि यह कार लोगों के जज्बातों से दोस्ती थी और अपने शुरूआती दिनों से करीब 80 के दशक तक यह कार पूरे भारत में राज करती रही।
लेकिन अभी तक जितनी ऊचाईयों को इस कार ने देखी थी, अब वो समाप्त होने वाला था क्योंकि मारूति सुजुकी ने अपनी कम कीमत वाली गाड़ी मारूति एक्शन लॉन्च कर दी थी जो कि 1983 में करीब ₹53,000 का मिलता था और इसी कार के लॉन्चिंग के बाद से ही एंबेसडर ने भारतीय कारों की दुनिया में दबदबा होना शुरू कर दिया और इसी तरह से आगे चलकर 90 का दशक एंबेसडर कार के लिए और भी बुरा साबित हुआ, क्योंकि देश विदेश की बड़ी बड़ी कंपनियां भारत में आनी शुरू हो गई थी।
हालांकि Ambassador कार को 1992 में फुल बोर मार्क टॉम के नाम से यूके में बेचने की कोशिश की गई और कार में कुछ बदलाव जैसे सीट बेल्ट्स और हीटर लगाए गए, जिससे कि बाई यूरोपियन सेफ्टी स्टैण्डर्ड पर काम कर पाया।
हलांकि यूके में इसे ज्यादा पसंद नहीं किया गया और इसी वजह से कंपनी को काफी नुकसान उठाना पड़ा और आखिरकार दो हज़ार 14 में फाइनेंसियल परेशानियों के चलते ही इन कार का प्रोडक्शन बंद करना पड़ा और फिर आगे एक फरवरी दो हज़ार 17 को एंबेसडर को एक फ्रांसीसी कंपनी पी एक रोक ली।
महज 800000000 की रकम के साथ खरीद लिया और बस एक समय तक सबका पसंदीदा होनेवाले अंबेसडर कार का सफर समाप्त हो गया।
वैसे तो अपनी शुरूआत से लेकर अब तक एंबेसडर कार के कई सारे मॉडल्स आते रहे, जिसमें मार्क वन सबसे पहला था जबकि 1957 से 1962 तक बनाया गया।
इसके बाद आया मार्क टू जो कि 1962 से 1975 तक बनाया गया उस कार की तीसरी जनरेशन मारुति 1975 से लेकर 1982 तक बाजार में रही तो और फिर मारखोर या फिर कह लीजिए की अंबेसडर की चौथी जनरेशन 1979 से 1990 तक बनी रही और फिर पाँचवें जनरेशन के तौर पर एंबेसडर नुमाइश या 1990 से 1999 तक बाज़ार में थी और फिर अंबेसडर कार के छठे जनरेशन का नाम कैटीन हंड्रेड आई एस जेड था जिसे कि 1992 से 2 हज़ार 11 तक बनाया गया था।
इसी बीच एंबेसडर इंडिगो नाम से भी एक कार लांच की गई थी, जिसे की बाजार में वापसी के लिए हिंदुस्तान मोटर्स इस्टेट जी के तहत लांच किया था, लेकिन यह कार भी कंपनी को बचाने में नाकाम रही और फिर दो हज़ार 13 में एंबेसडर का आखिरी मॉडल लांच किया गया, जिसका नाम था अंबेसडर एनकोर या कार बीयर्स।
मानकों पर आधारित थी, लेकिन इतने प्रयासों के बाद भी हिन्दुस्तान मोटर्स की अन्य वापसी नहीं कर सकी और शायद इस कार की वापसी न कर पाने की।
यह भी वजह थी कि इसने अपनी ट्रेडिशनल डिजाइन को कभी भी नहीं छोड़ा और दूसरी कार कंपनीज लोगों के दिमाग को पढ़ते हुए समय के साथ साथ आगे बढती रही और अपनी डिजाइन में बदलाव करते हुए लोगों के मन को भाती रही।
बहरहाल कुछ भी हो एंबेसडर कार की जगह हमारे दिलों में हमेशा रहेगी और किंग ऑफ इंडियन रोड तो हमेशा से ही किसी के साथ जोड़ा जाएगा। उम्मीद है कि आपको Ambassador की यह स्टोरी जरूर पसंद आयेगी।